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28 Feb 2023

पर्यावरण और स्वास्थ्य

प्रश्न- एल्यूमिनियम के बर्तनों का मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- एल्यूमिनियम मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। अमेरिका के नेशनल कैमिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में हुये शोध के अनुसार एल्यूमिनियम पेट के लिए हानिकारक है। जब पकते भोजन में नमक डाला जाता है तो एल्यूमिनियम हाइड्रोक्लोराइड का निर्माण तथा एल्यूमिनियम के सल्फेट के साथ क्षारीय सल्फेट मिलकर फिटकरी का निर्माण कर देते हैं जिससे पेट का अल्सर, पक्षाघात आदि रोग व शरीर में फास्फेट की कमी हो सकती है। इसलिए एल्यूमिनियम के बर्तनों का यथासंभव प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि करना भी पड़े तो नमक या सोडा बिल्कुल न डालें।
प्रश्न- क्या चांदी के वर्क शाकाहारी व्यक्ति के खाने योग्य होते हैं?
उत्तर- नहीं। चांदी के वर्क बनाने के लिए बैल की आंतों का प्रयोग किया जाता है। बैल के आंतों को काटकर उनकी तहों के बीच में चांदी के टुकड़े रख दिये जाते हैं और हथौड़े मारे जाते है जिससे चांदी फैलकर वर्क बन जाती है। बैल की आंत मजबूत होने के कारण हथौड़े से भी टूटती नहीं। मगर वर्कों पर आंतों का कुछ अंश अवश्य लग जाता है। इसलिए ये शाकाहारी व्यक्ति के खाने योग्य नहीं है।
प्रश्न- बढ़ते प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर कितना गहरा प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर- बढ़ते प्रदूषण के परिणामस्वरूप आज देश का हर 100वां व्यक्ति कैंसर से पीड़ित है।
प्रश्न- क्या आईसक्रीम व आईसकैंडी स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त है?
उत्तर- नहीं। आईसक्रीम व आईसकैंडी स्वास्थ्य के लिए घातक होती हैं। क्योंकि इन्हें दूध से बनाने की बजाय आमतौर पर व्हाईट पोस्टर कलर, मैदा व अरारूट से तैयार किया जाता है। पोस्टर कलर स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं। इनमें मीठे के रूप में चीनी की बजाय सैक्रीन व मीठे सोडे का प्रयोग किया जाता है जो की घातक है। इतना ही नहीं इनमें रंग भी खाने वाले न डालकर होली खेलने व कपड़े रंगने वाले प्रयोग किये जाते हैं। परिणामस्वरूप हैजा, डायरिया जैसे रोग हो सकते हैं।
प्रश्न- ऑक्सिटोसीन क्या काम आता है?
उत्तर- ऑक्सिटोसीन एक दवा होती है जो प्रसव के दौरान महिला को टीके के रूप में दी जाती है ताकि महिला को अधिक कष्ट न हो।
प्रश्न- ऑक्सिटोसीन का कैसे दुरूपयोग हो रहा है?
उत्तर- कुछ लालची लोगों द्वारा पशुओं का बूंद—बूंद दूध निचोड़ने के लिए इस टीके का प्रयोग किया जाने लगा है जो घातक है। इसका प्रयोग आजकल सब्जियों को जल्दी बड़ा करने के लिए भी किया जाता है।
प्रश्न- दूध निकालने के लिए ऑक्सिटोसीन का प्रयोग करने के दुष्परिणाम बताएं।
उत्तर- इसके प्रयोग से दुधारू पशु के स्वास्थ्य पर तो कुप्रभाव पड़ता ही है साथ में दूध पीने वाले को उल्टियां, नपुंसकता, महिलाओं में स्तन कैंसर तथा गर्भपात हो सकता है।
प्रश्न- सिंथेटिक दूध व घी बनाने के लिए किन पदार्थों का उपयोग होता है?
उत्तर- यूरिया, महुवे का तेल, काला तेल, तेज़ाब, फार्मलडीहाइड रसायन, सुरजमुखी का तेल तथा एसोटिक एसिड आदि प्रयोग किये जाते हैं। ये दूध व घी अत्यन्त घातक होते हैं और इनके लगातार उपयोग से अनेक बीमारियां हो सकती हैं।
प्रश्न- फ्लोरोसिस किस बीमारी का नाम है?
उत्तर- दाँतों व हड्डियों की बीमारी का।
प्रश्न- भारत में कितने लोग फ्लोरोसिस से ग्रस्त हैं?

उत्तर- 62 करोड़ लोग दूषित जल के कारण फ्लोरोसिस के शिकार हैं। 

पर्यावरण और सौन्दर्य प्रसाधन

प्रश्न- सौन्दर्य प्रसाधन पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?
उत्तर- सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण के दौरान CFC (क्लोरो—फ्लोरो कार्बन) गैसें निकलती हैं जो कि ओजोन परत के क्षय के लिए उत्तरदायी हैं।
प्रश्न- क्या लिपस्टिक शाकाहारी महिलाओं के उपयोग के लायक है?
उत्तर- नहीं। लिपिस्टिक में जानवरों का खून होता है, इसलिए शाकाहारी लोगों के उपयोग योग्य नहीं है।
प्रश्न- सैंट बनाने के लिए किस जानवर का उत्पीड़न किया जाता है?
उत्तर- बिज्जू का।
प्रश्न- प्रयोग के दौरान शैम्पू किस जानवर की आँखें छीन रहा है?
उत्तर- खरगोश की।
प्रश्न- क्या फेस क्रीम से चेहरे की सुन्दरता बढ़ती है?
उत्तर - नहीं। फेस क्रीम में रसायन होते हैं जिनसे चेहरे की प्राकृतिक सुन्दरता भी नष्ट हो जाती है।
प्रश्न- सूटकेस व पर्स आदि बनाने के लिए किस जानवर का कत्ल किया जाता है?
उत्तर- कछुओं का।
प्रश्न- बालों, चर्बी व मांस के लिए किस जानवर को जिन्दा जलाया जाता है?
उत्तर- सुअर को।
प्रश्न- रेशम की एक साड़ी बनाने के लिए कितने कीड़ों को उबलते पानी में डालना पड़ता है?
उत्तर- लगभग पांच हजार रेशम के कीड़ों को।
प्रश्न- हाथी दांत सौन्दर्य—प्रसाधन तैयार करने के लिए किस जानवर को मारा जाता है?
उत्तर- हाथी को।
प्रश्न- ऑफ्टर शेव लोशन की परीक्षा किस प्राणी पर की जाती है?
उत्तर- ऑफ्टर शेव लोशन के परीक्षण के लिए गिनीपिगों की चमड़ी उधेड़ी जाती है।
प्रश्न- कस्तूरी के लिए किस जानवर को मारा जाता है?
उत्तर- कस्तूरी मृग को।
प्रश्न- नहाने के साबुन में पशुजनित कौन—सा पदार्थ मिलाया जाता है?
उत्तर- नहाने के साबुन में 65 से 85 प्रतिशत तक जानवरों की चर्बी मिलाई जाती है जिसे पशुवसा कहते हैं।
प्रश्न- क्रीम (फेस क्रीम, कोल्ड क्रीम आदि) में चिकनाई पैदा करने के लिए कौन—सा पदार्थ मिलाया जाता है?
उत्तर- जानवरों की चर्बी।
प्रश्न- नेल पालिश में कौन—कौन से घातक रसायनों का प्रयोग होता है?
उत्तर- नेल पालिश में एसीटोन, स्प्रिट, आइसो—प्रोपाइल, अल्कोहल, टोल्यूएशन, टाइटेनियम ऑक्साइड, नाइट्री—सेल्यूलोज, जिलेटिन, टारेन, फिनायल आदि रसायन प्रयुक्त होते हैं।
प्रश्न- नेल पालिश के प्रयोग से कौन—कौन से रोग होने का खतरा रहता है?
उत्तर- नेल पालिश में प्रयुक्त रसायनों से दाद, खुजली आदि चर्म रोग, सिरदर्द, सांस सम्बंधी बीमारियां, फेफड़ों की जलन व नाखूनों की बदरंगता के अलावा कैंसर होने का खतरा रहता है।

पर्यावरण के लिए चुनौती बनता पॉलीथीन

पर्यावरण के लिए खतरा पोलीथिन 

आधुनिकता की अंधी दौड़ में आज आदमी थैला लेकर बाज़ार से सामान लाना अपनी प्रतिष्ठा के विरूद्ध समझने लगा है। परिणामस्वरूप पॉलीथीन के थैले-थैलियों का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। हर वस्तु की पैकिंग अब पॉलीथीन में होने लगी है और यह अब जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है। किंतु पॉलीथीन का प्रयोग हमारे पर्यावरण के लिए अति घातक सिद्ध हो रहा है। इसकी उपयोगिता के कारण इसके दुष्परिणामों को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
पॉलीथीन बैग से निर्माण से इसके नष्ट होने तक का सफर पर्यावरण को किसी न किसी रूप में प्रदूषित करता है। इनको बनाते समय प्लास्टिक जलने से बदबू उठती है जिससे वायु प्रदूषण फैलता है। जब इसका प्रयोग करने के बाद फेंक दिया जाता है तब भी ये प्रदूषण का मुख्य कारण बनते हैं। कूड़े के ढेर में फेंके गए पॉलीथीन हवा से उडक़र नालियों तक पहुँच जाते हैं और उन्हें अवरूद्ध कर देते हैं। जिससे गंदा पानी सडक़ों पर बहने लगता है और पर्यावरण को प्रदूषित करता है। इसी प्रकार जब पॉलीथीन सीवरेज में चले जाते हैं तो शहर भर की सिवरेज व्यवस्था को में रुकावट पैदा कर देते हैं। नालियों और सिवरेज में सर्वाधिक रुकावट पॉलीथीन से ही होती है। 
सडक़ों और गलियों में उड़ते और नालियों में बहते पॉलीथीन जल स्त्रोतों तक पहुँच कर जल प्रदूषण का कारण भी बन रहे हैं। नदी, नालों, जोहड़ों और तालाबों में अकसर पॉलीथीन बैग तैरते देखे जा सकते हैं। 
विशेषज्ञों का मत है कि पॉलीथीन में खाद्य सामग्री डाली जाए तो वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारण है और घातक बीमारियों का कारण बन सकती है। इसके दुष्प्रभावों के परिणामस्वरूप कुछ राज्य सरकारों में इसके निर्माणए उपयोग और भंडारण पर पाबंदी लगाई हुई है। मगर जनसहयोग के अभाव में यह केवल कागजों तक ही सीमित होकर रह गई है। 
महानगरों और शहरों में ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी पॉलीथीन का प्रयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है। गाँवों में किसान अपने घर का कूड़ा करकट खाद के रूप में खेतों में डालते हैं और अब पॉलीथीन भी खाद के साथ खेतों में पहुँच रहे हैं जो किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहे हैं। पॉलीथीन को गलकर नष्ट होने में वर्षों लगते हैं। जिससे इनकी संख्या खेतों में लगातार बढ़ रही है। बिजाई करते समय इनके नीचे जो बीज चले जाते हैं वे या तो उगते ही नहीं है और अगर उग भी जाएँ तो पॉलीथीन से बाहर नहीं आ पाते। इसी प्रकार यदि कोई बीज इनके ऊपर गिर जाता है तो वह भी नष्ट हो जाता है क्योंकि उसकी जड़े पॉलीथीन को पार करके भूमि में नहीं जा पाती। इसके कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। 
यदि हम अपनी सुविधा को पर्यावरण संरक्षण से अधिक महत्त्व देते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब चारों ओर पॉलीथीन का कचरा ही कचरा नजर आएगा। भूमि, जल और वायु सब प्रदूषित हो जाएँगे और हम स्वच्छ हवा और पानी के लिए तरस जाएँगे। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार, समाज और व्यक्ति हर स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के प्रयास किए जाएँ। सरकार को पॉलीथीन पर पूर्ण पाबंदी लगा देनी चाहिए और उसे सख्ती से लागू करना चाहिए। समाज यह सुनिश्चित करे कि सरकार द्वारा लगाया गया प्रतिबंध प्रभावी हो। प्रत्येक नागरिक भी अपना उत्तरदायित्व समझकर स्वेच्छा से पॉलीथीन का प्रयोग न करने का संकल्प ले ताकि हमारा पर्यावरण स्वच्छ रहे।

प्रकृति की रोचक जानकारी

प्रकृति के रोचक किस्से 

1. जलमोर यानी जकाना लिली ट्राटर एक ऐसा पक्षी है जो पानी पर चल सकता है| इसके पंजे खूब लम्बे होते हैं जिनके कारण यह पानी में तैरती पत्तियों पर आसानी से चल लेता है| इसी खूबी के कारण इसको जलमोर कहा जाता है| भारत में भी इसकी दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं|

2. सी-स्क्वर्ट एक ऐसा जीव है जिसका आकार बोतल जैसा होता है| इसी कारण इसे समुद्री पिचकारी के नाम से भी जाना जाता है| इसके शरीर में दो छेद होते हैं| एक से वह पानी अन्दर लेता है और दूसरे से शरीर का बेकार जल बाहर निकालता है, जिसे वह पिचकारी की तरह भी छोड़ता है| खतरा होने पर दोनों छेदों से पानी की पिचकारी छोड़ता है|

3. ग्रीव एक ऐसा जल पक्षी है जो अपने ही कुछ पर खा जाता है| वह अपने बच्चों को भी अण्डों में निकलने पर अपने पर ही खिलाता है|

4. अभी तक आपने सुना होगा की वृक्ष केवल देते हैं, कुछ लेते नहीं| मगर एक ऐसा वृक्ष भी है जो दूसरों की मेहनत को लूट लेता है| इस पेड़ का नाम है क्रिस्मस ट्री जो आस्ट्रेलिया में पाया जाता है| यह पेड़ तब फूल देता है जब बाकि पेड़ पतझड़ झेल रहे होते हैं|

यह वृक्ष दूसरे पेड़ों की लम्बी जड़ों द्वारा खींचे गए पानी पर डाका डालता है| इसके लिए यह अपनी जड़ों को दूसरे पेड़ों की उन जड़ों से जोड़ लेता है जो जल खिंच कर लाती हैं और उनसे पानी चूसता रहता है और गर्मी में भी हराभरा रहता है|  

पर्यावरण संरक्षण में विद्यार्थियों की भूमिका : निबंध

पर्यावरण संरक्षण में विद्यार्थियों की भूमिका : निबंध 

पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक और जटिल समस्या है। कोई देश या सरकार अकेले अपने दम पर इस समस्या का समाधान नहीं कर सकती। इससे निपटने के लिए प्रत्येक नागरिक को अपना उत्तरदायित्व निभाना होगा। विद्यार्थी भी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान दे सकते हैं।
विद्यार्थियों को कागज का प्रयोग दोनों तरफ से और मितव्ययिता से करना चाहिए। क्योंकि लकड़ी की सर्वाधिक खपत कागज और लुगदी उद्योग में ही होती है, जिसे पूरा करने के लिए पेड़ों को काटना पड़ता है और पर्यावरण का नुकसान होता है। विद्यार्थियों को अपनी पुरानी किताबें किसी बुक-बैंक या जरूरतमंद अन्य विद्यार्थी को दे देनी चाहिए। इसी प्रकार नोट बुक्स में खाली पृष्ठ नहीं छोडऩे चाहिए और भरी हुई नोट बुक्स को फाडक़र फेंकने की बजाय रद्दी वाले को दे देनी चाहिए, जिससे कागज को रि-साईकिल किया जा सके और पेड़ों की रक्षा हो सके।
प्रकृति ने जितना जल हमें दिया है उसका केवल एक प्रतिशत ही हम पृथ्वी वासी उपयोग कर सकते हैं। वह भी धीरे-धीरे प्रदूषित होता जा रहा है। स्थिति यह है कि आज भी दुनिया में डेढ़ अरब लोग ऐसे हैं जिन्हें स्वच्छ पेयजल नहीं मिल पाता। इसलिए विद्यार्थी जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। हाथ-मुँह धोते और ब्रश करते समय नल को खुला नहीं छोडऩा चाहिए, ये कार्य लोटे या मग में पानी लेकर किए जा सकते हैं। नहाते समय शॉवर की बजाय बाल्टी का प्रयोग करना चाहिए, इससे जल की बचत होगी। विद्यार्थी जल संरक्षण के लिए अपने घर-परिवार और आस-पड़ोस में लोगों को जागरूक करने का काम भी कर सकते हैं।
पॉलीथीन भी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती है। इसलिए विद्यार्थियों को इसके प्रयोग से बचना चाहिए। जब भी सामान लेने जाएँ थैला साथ लेकर जाएँ। यूज एंड थ्रो वाली चीजों का प्रयोग करने से बचें। अगर प्लास्टिक या पॉलीथीन की पैकिंग में कोई सामान लाते भी हैं तो थैलियों को इधर-उधर न फेंके। क्योंकि ये थैलियाँ उडक़र नालियों और सिवरेज में पहुँचकर उन्हें अवरूद्ध कर देती हैं और गंदगी सडक़ों पर फैल जाती है। इसी प्रकार ये जलस्त्रोतों तक पहुँच कर जल को भी प्रदूषित करती हैं। इसलिए प्लास्टिक कचरा सुरक्षित और निर्धारित स्थान पर ही डालें ताकि उसे रि-साईकिल किया जा सके।
विद्यार्थी बिजली की बचत करके भी पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। क्योंकि बिजली के उत्पादन में कोयला, गैस या जल का प्रयोग होता है और बिजली का अपव्यय इन ऊर्जा स्त्रोतों को प्रभावित करने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण का कारण भी बनता है। कोयला जलने से जहरीला धुँआ तो निकलता ही है फ्लाई ऐश भी पैदा होती है जो पर्यावरण के लिए घातक है। इसलिए विद्यार्थियों को ध्यान रखना चाहिए कि जब आवश्यकता न हो बिजली के उपकरण बंद कर दें। लाईट और पंखा केवल उसी कमरे का चालू रखें जहाँ बैठकर पढ़ रहे हों। यदि संभव हो तो सौर ऊर्जा के उपकरणों का अधिक से अधिक उपयोग करें।
विद्यार्थी निजी साधनों की बजाय सार्वजनिक यातायात के साधनों का उपयोग करके भी तेल और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। कम दूरी पर जाने के लिए साईकिल का प्रयोग करें या पैदल चलें इससे सेहत भी ठीक रहती है और पर्यावरण को भी हानि नहीं पहुँचती।
त्योहारों और उत्सवों पर आतिशबाजी करके प्रदूषण नहीं फैलाना चाहिए और नाही बिजली-पानी की बर्बादी करनी चाहिए। बल्कि पौधारोपण करके इनको यादगार बनाना चाहिए। जन्म दिवस पर तो हर वर्ष एक पौधा अवश्य लगाना चाहिए।
वायु प्रदूषण के नियंत्रण में भी विद्यार्थी अपना सहयोग दे सकते हैं। जब भी टी.वी. या सी.डी. प्लेयर आदि चलाएँ तो आवाज इतनी ही रखें की आपको सुन जाए। तेज आवाज में म्यूजिक नहीं बजाना चाहिए और अपनी बाईक आदि में भी साधारण हॉर्न का केवल जरूरत होने पर ही प्रयोग करना चाहिए।
उपरोक्त छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर हम अपने पर्यावरण और भविष्य दोनों को सुरक्षित कर सकते हैं।

पर्यावरण और मानव पर रसायनों के दुष्प्रभाव

प्रश्न- शैम्पू में कैंसर पैदा करने वाला कौन-सा रसायन होता है?
उत्तर- शैम्पू में नाइट्रोसैमाइन्स रसायन होता है, जिससे कैंसर होता है।
प्रश्न-लिपस्टिक में कौन-कौन से हानिकारक तत्व पाये जाते हैं? 
उत्तर-कैम्पेन फॉर सेफ कास्मेटिक्स नामक अमेरिकी संगठन के अनुसार लिपस्टिक में हानिकारक तत्व सीसे की मात्रा निर्धारित स्तर से बहुत अधिक होती है। सीसे के पेट में ताने से गर्भधररण क्षमता का ह्रास और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। संगठन के अनुसार महँगी लिपस्टिक में सीसे के अंश सस्ती लिपस्टिक से कहीं अधिक होते हैं।                                                                                                                               प्रश्र-लिपस्टिक में कैंसर पैदा करने वाला कौन-सा रसायन होता है?


उत्तर- फिलाडेल्फिया के फॉक्स चेंज कैंसर केन्द्र की शोध रिर्पोट के अनुसार लिपस्टिक मेें ब्यूटाइल बेंजाइल थायलेट अर्थात बीबीपी नामक रासायनिक पदार्थ के कारण स्तन उत्तक के विकास में रुकावट आती है। बीबीपी का प्रयोग लिपस्टिक को चमकीला बनाने के लिए किया जाता है। जिससे स्तन कैंसर हो सकता है।             
प्रश्र-धुमपान और शराब का एक साथ प्रयोग शरीर के किस अंग को प्रभावित करता है?
उत्तर-निकोटीन व शराब का एक साथ सेवन दिमागी क्षमता को प्रभावित करता है। टेम्पल विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार दोनों मादन पदार्थों का एक साथ प्रयोग मनुष्य के सीखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है।                                                                                                                                                         
प्रश्न- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मानव दूध में डीडीटी की कितनी मात्रा सुरक्षित है? 
उत्तर- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिदिन एक लीटर दूध में डीडीटी की 0.005 मिली ग्राम मात्रा को स्वीकार किया जा सकता है।
प्रश्न- पंजाब में मानव दूध में डीडीटी/बीएचसी की कितनी मात्रा पाई गई है?
उत्तर- पंजाब राज्य विज्ञान एवं तकनीकी परिषद के एक अध्ययन के अनुसार पंजाब में मानव दूध में डीडीटी की मात्रा प्रति लीटर 0.51 मिली ग्राम पाई गई जो अमेरिका, कनाडा, यूरोप और आस्ट्रेलिया से अधिक है। 
प्रश्न- विश्व में मानव दूध में सर्वाधिक डीडीटी कहाँ पाई गई है?
उत्तर- ग्वाटेमाला के मानव दूध में 4.07 मिली ग्राम।

ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण

प्रश्न- ग्लोबल वार्मिंग के चलते मालदीव के कितने द्वीप समुद्र में डूब चुके हैं ?
उत्तर- 9 द्वीप|
प्रश्न- हिमालय में फैला ग्लेशियर पिघलने के कारण 1962 से अब तक कितना सिकुड़ चुका है?
उत्तर- 21 प्रतिशत|
प्रश्न- पृथ्वी के तापमान में सन 1900 से लेकर अब तक कितनी वृद्धि हो चुकी है?
उत्तर- 3 फरवरी, 2007 को पैरिस में जारी पर्यावरण एवं मौसम विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक 0.7 से 0.8 डिग्री के बढ़ोतरी हो चुकी है| जिसके सन 2100 तक 1.1 से लेकर 6.4 डिग्री तक बढ़ने की आशंका है|
प्रश्न- मानव द्वारा प्रतिवर्ष कितनी कार्बन वायुमंडल में छोड़ी जा रही है?
उत्तर- मनुष्य 8 अरब मीट्रिक टन कार्बन सालाना वायुमंडल में छोड़ देते हैं| जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है|
प्रश्न- CFC अर्थात क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैस का प्रयोग किन-किन उपकरणों में होता है?
उत्तर- CFC का प्रयोग एयर कंडीशन और फ्रिज में होता है| इससे वायुमंडल में 17 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसें बढ़ रही हैं|
प्रश्न- वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसें कैसे और कितनी बढ़ रही हैं?
उत्तर- जीवाश्म ईंधन से 57 प्रतिशत, CFC से 17 प्रतिशत, कृषि से 14 प्रतिशत, जंगलों के सफाए से 9 प्रतिशत तथा अन्य उद्योगों से 3 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैस वायुमंडल में मिल रही हैं|
प्रश्न- वायुमंडल में कौन-सी गैस सर्वाधिक पाई जाती है?
उत्तर- नाइट्रोजन|
प्रश्न- वायुमंडल में कितने प्रतिशत नाइट्रोजन पाई जाती है?
उत्तर- 78 प्रतिशत|
प्रश्न- कौन-सी गैस ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए उत्तरदायी है?
उत्त्तर- कार्बनडाईऑक्साइड |
प्रश्न- विश्व में कितने ज्वालामुखी सक्रिय हैं?
उत्तर- 850
प्रश्न- प्रकृति का सुरक्षा वाल्व किसे कहा जाता है?
उत्तर- ज्वालामुखी |


जैवविविधता और पर्यावरण

प्रश्न- एशिया में पक्षियों की कुल कितनी प्रजातियाँ पाई जाती हैं?
उत्तर- 2900.
प्रश्न- एशिया में पाई जाने वाली 2900 पक्षी प्रजातियों में से कितनी विलुप्ति के कगार पर हैं?
उत्तर- 500.
प्रश्न- बर्ड लाइफ इंटरनेशनल ने कितनी प्रजातियों की पहचान की है, जिनकी स्थिति चिंताजनक है? 
उत्तर- 77 प्रजातियाँ |  जिनमें राजगिद्ध, शाकाहारी कबूतर, सतरंगी चिड़िया, नीलकंठ, तोते, मोर और बाज आदि की तादाद तेजी से घटी है|
प्रश्न- एशिया में पक्षियों पर सर्वाधिक संकट किस देश में है?
उत्तर- सबसे ख़राब स्थिति इंडोनेशिया की है, जहाँ पक्षियों की 180 प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं| दूसरे स्थान पर चीन है, जहाँ 178 प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है| भारत में 93 प्रजातियों पर तथा फिलिपिन्स में 81 प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है|
प्रश्न- तोते की उम्र कितनी होती है?
उत्तर- लगभग 50 साल|
प्रश्न- तोते वर्ष में कितनी बार प्रजनन करते हैं?
उत्तर- वर्ष में एक बार|
प्रश्न- सर्वाधिक लुप्त पक्षियों में से एक तोता पक्षी की कितनी प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा कितनी गंभीर खतरे में हैं?
उत्तर- तोते की 145 प्रजातियों में से 46 गंभीर खतरे में हैं जबकि 39 प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं|
प्रश्न- दुनिया के सबसे लम्बे ज़हरीले कोबरा का क्या नाम है और यह कहाँ पाया जाता है?
उत्तर- दुनिया का सबसे लम्बा कोबरा केन्या में पाया जाता है, जो करीब 2.6 मीटर लम्बा तथा भूरे रंग व काले गले का होता है| इसको नाजा आशेई नाम दिया गया है| यह एक ही दंश में 20 लोगों को मौत की नींद सुला सकता है|

Wildlife in Haryana

National Parks in Haryana 

1. SultanPur National Park, Gurgaon.
2. Kalesar National Park, Yamunanagar.

Wildlife Sanctuaries in Haryana 

1. Kalesar Wild life Sanctuary, Yamunanagar.
2. Bir Shikargah wild life Sanctuary, Panchkula.
3. Chhilchhila wild life Sanctuary, Kurukshetra.
4. Nahar wild life Sanctuary, Rewari.
5. Abubshahar wild life Sanctuary, Sirsa.
6. Bhindawas wild life Sanctuary, Jhajjar.
7. Khaparwas wild life Sanctuary, Jhajjar.
8. Khol-Hi-Raitan wild life Sanctuary, Panchkula. 

Conservation Reserves in Haryana 

1. Saraswati, District Kaithal.
2. Bir Bara Ban, District Jind. 

Deer Park in Haryana 

1. Deer Park, Hisar.

Zoos in Haryana 

1. Mini Zoo, Bhiwani
2. Rohtak Zoo
3. Mini Zoo, Pipli.

Breeding Centers in Haryana 

1. Chinkara Breeding Center, Kairu.
2. Crocodile Breeding Center, Bhaur Saidan (Kurukshertra)
3. Vulture Conservation and Breeding Center, Pinjore.
4. Pheasant Breeding Center, Morni

5. Peacock and Chinkara Breeding Center, Jhabua.  

भारत में वन

प्रश्न- राष्टीय वन नीति के अनुसार पर्यावरण की दृष्टि से कम से कम कितने प्रतिशत क्षेत्र पर वनों का आवरण आवश्यक है?
उत्तर- 33 प्रतिशत|
प्रश्न- भारत सरकार ने नयी वन नीति कब घोषित की?
उत्तर- 1988.
प्रश्न- भारत में कुल वन और वन आच्छादित क्षेत्र कितना है?
उत्तर- 7,83,668 वर्ग किलोमीटर |
प्रश्न- देश के कुल क्षेत्रफल के कितने प्रतिशत भूभाग पर वनों का आवरण है?
21.02 प्रतिशत |
प्रश्न- विश्व के कुल वन क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत भाग भारत में है?
उत्तर- 2.82 प्रतिशत|
प्रश्न- देश में सर्वाधिक वन किस राज्य में हैं?
उत्तर- मध्यप्रदेश|
प्रश्न- कुल वन क्षेत्र की दृष्टि से भारत के प्रथम तीन राज्य कौन-से हैं?
उत्तर- मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ |
प्रश्न- किस राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के सबसे कम भाग पर वनों का विस्तार पाया जाता है?
उत्तर- हरियाणा |
प्रश्न- पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए कितना न्यूनतम वन आवरण अनिवार्य है?
उत्तर- 33 प्रतिशत|
प्रश्न- भारतीय वन संरक्षण विभाग की स्थापना कब की गयी?
उत्तर- 1981 ई. में|
प्रश्न- वन सुरक्षा के लिए स्वतंत्र भारत की प्रथम वन नीति कब घोषित हुयी?
उत्तर- 1952 ई. में|
प्रश्न- भारत में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर किस प्रकार के वन पाए जाते हैं ?
उत्तर- उष्णार्द्र पतझड़ वन |

वृक्ष हमारे मित्र निबंध

निबंध - वृक्ष हमारे मित्र  

पेड़ हमारे मित्र 

किसी कवि ने लकड़ी की अहमियत बताते हुए लिखा है- "जीते लकड़ी, मरते लकड़ी, खेल तमाशा लकड़ी का|" कहने का भाव यह है कि मनुष्य को जन्म से लेकर मरण तक लकड़ी की जरुरत पड़ती है और यह लकड़ी हमें मिलती है वृक्षों से| दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि वृक्ष मानव का आजीवन तो साथ निभाते ही हैं, मरने पर भी उसके अंतिम संस्कार में काम आते हैं| 
हमारे जीवन में वृक्षों का महत्त्व केवल लकड़ी के कारण ही नहीं है, वृक्षों से हमें और भी बहुत कुछ मिलता है| इस लाभ को दो भागों में बांटा जा सकता है-
१. वृक्षों या वनों के प्रत्यक्ष लाभ और २. वृक्षों के अप्रत्यक्ष लाभ|
१.प्रत्यक्ष लाभ में वे लाभ शामिल हैं जो हमें सीधे तौर पर प्राप्त होते हैं| जैसे लकड़ी, भोजन, छाया, औषधियां आदि|
२. अप्रत्यक्ष लाभ के रूप में वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण से सोख कर ओक्सीजन प्रदान करते हैं, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं, प्रदूषण नियंत्रण में मदद करते हैं, वर्षा लाने में सहायता करते हैं और खाद्य प्रोटीन उपलब्ध करवाते हैं| 
वृक्ष किस-किस रूप में हमारे मित्र हैं अब इसकी विस्तार से चर्चा करेंगे-

लकड़ी प्रदाता के रूप में- 

वृक्षों से हमें जलावन और इमारती लकड़ी मिलती है, सभी प्रकार का फर्नीचर भी लकड़ी से ही बनाया जाता है| यहाँ तक कि छोटी नाव और कश्मीर में हाउस बोट भी लकड़ी से ही बनाये जाते हैं| दैनिक जीवन में वृक्षों की लकड़ी का बहुत अधिक महत्त्व है और यह हमें अपने वृक्ष मित्रों से ही प्राप्त होती है|

फूल और फल प्रदाता के रूप में- 

वृक्षों से हमें अनेक प्रकार के फल और फूल प्राप्त होते हैं| फलों से जहाँ हमारी विटामिन और प्रोटीन आदि जरूरतें पूरी होती हैं और यह हमारी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करते हैं| वहीँ फूलों का भी हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्त्व है और ये हमें मिलते हैं वृक्ष मित्रों से|

प्रदूषण नियंत्रक के रूप में-

वृक्षों को सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक प्रदूषण नियंत्रक कहा जाता है| क्योंकि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके प्राण वायु कहलाने वाली ओक्सीजन को वातावरण में छोड़ते हैं| जिससे हमारा पर्यावरण संतुलित रहता है| वृक्ष रेगिस्तान का विस्तार भी रोकते हैं| इस प्रकार वे हमारे अच्छे मित्र की भूमिका निभाते हैं|

औषधी प्रदाता के रूप में- 

वृक्षों और वनस्पतियों से ही हमें अधिकांश औषधियां प्राप्त होती हैं| कितने ही वृक्षों के फल, फूल, पते, जड़, छाल आदि औषधियों के रूप में प्रयोग होते हैं और मानव जीवन को सुखमय और दीर्घ बनाने में अपना योगदान देते हैं| इस प्रकार वृक्ष हमारे सच्चे मित्र हैं|

भोजन और आश्रय प्रदाता के रूप में- 

वृक्षों से न केवल मानव को ही भोजन मिलता है, बल्कि अन्य शाकाहारी जीव-जंतुओं को भी भोजन मिलता है| वृक्षों से बड़ी मात्र में खाद्य प्रोटीन प्राप्त होता है| इसके अलावा वृक्ष मनुष्यों और जीवों को अपनी छाया और शाखाओं पर आश्रय भी प्रदान करते हैं| किसान दिन में पेड़ों की छाया में आश्रय पाते हैं और रात के समय पेड़ों पर बने मचान में रहकर अपनी फसलों की सुरक्षा करते हैं|

भू-संरक्षक के रूप में-

वृक्ष भू-कटाव और मृदा-अपरदन को रोकने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| वृक्षों के कारन बाढ़ पर भी नियंत्रण रहता है और ये तेज हवाओं को नियंत्रित करके रेगिस्तान के फैलाव को भी रोकते हैं|

खाद प्रदाता के रूप में- 

वृक्ष भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाते हैं| वृक्षों के पते जहाँ खाद का काम करते हैं, वहीँ वृक्षों के जड़ें पानी को सोखकर रखती हैं और आवश्यकता के समय फसल को उपलब्ध करवाती हैं| 

कागज़ प्रदाता के रूप में- 

पेड़ों से मिलने वाली लकड़ी की सर्वाधिक खपत कागज़ और लुगदी उद्योग में होती है, यानी कागज़, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती वह भी हमें वृक्ष मित्रों की बदोलत ही मिलता है|  

जैव विविधता (Biodiversity) - पर्यावरण

जैव विविधता (Biodiversity) पर निबंध 

जीवधारियों की विभिन्न प्रजातियों तथा उनकी विभिन्नताओं को जैव विविधता कहा जाता है| अध्ययन की दृष्टि से जय विविधता को तीन स्तरों में बांटा जा सकता है- (क) आनुवांशिक विविधता (ख) प्रजातीय विविधता (ग) पारितंत्रिय विविधता| 
हमारा देश भौगोलिक परिस्थितियों और जलवायु में विविधता के कारण एक जैव विविधता सम्पन्न देश| दुनिया के पांच प्रतिशत जीव भारत में पाए जाते हैं, जबकि भारत का कुल क्षेत्रफल संसार का केवल दो प्रतिशत ही है| दुनिया की कुल ज्ञात लगभग दो लाख 50 हजार वनस्पतियों में से भारत में लगभग 15 हजार वनस्पतियाँ पाई जाती हैं| भारत में पक्षियों की 1200 जातियां तथा  900 उपजातियां पाई जाती हैं| पशुओं की लगभग 8100 प्रजातियाँ और पेड़-पौधों की लगभग 47 हजार प्रजातियाँ भी हमारे देश में पाई जाती हैं| 
किन्तु जल प्रदूषण, अवैध शिकार, वन कटाव, मानव प्राणी संघर्ष, अनियोजित विकास तथा बढती आबादी के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था के कारण जैव विविधता का तेजी से ह्रास हो रहा है|  देश में 133 जीव प्रजातियाँ 1972 के प्राणी सुरक्षा अधिनियम के तहत सुर्लभ घोषित की जा चुकी हैं तो दर्जनों अब तक विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्ति के कगार पर हैं| दुर्लभ घोषित प्रजातियों में 70 स्तनपायी, 22 सरीसृप, 3 उभयचर और 41 पक्षी प्रजातियाँ शामिल हैं| ये ऐसी प्रजातियाँ हैं जो अब क्षेत्र विशेष तक सिमित हो गई हैं| 
जैव विविधता के संरक्षण के लिए आवश्यक है कि शिकार पर प्रतिबन्ध को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, सुरक्षित वन क्षेत्र विक्सित किया जाए, वनों का विनाश और अवैध खनन रोका जाए तथा संकटग्रस्त प्रजातियों का संग्रहण किया जाए| इस दिशा में कुछ प्रयास हुए भी हैं | सरकार ने वन्य जीव संरक्षण क्षेत्र और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना की है| टाइगर प्रोजेक्ट, पक्षी विहार, हाथी परियोजनाएं, काला हिरण प्रजनन केंद्र, गिद्ध प्रजनन केंद्र और अभ्यारण्य स्थापित करने के अलावा जैव संरक्षित क्षेत्र भी बनाए हैं| प्रमुख जैव संरक्षण क्षेत्रों में निकोबार, नामदाफा, मानस, काजीरंगा, सिमलीपाल, नंदादेवी, उत्तराखंड, नीलगिरी, कच्छ का रन, मन्नार की खाड़ी, कान्हा, नोकटेक, सुंदरवन और थार का रेगिस्तान शामिल हैं| देश में 68 राष्ट्रीय उद्यान, 367 अभ्यारण्य, 25 टाइगर प्रोजेक्ट और 11 हाथी परियोजनाओं के अलावा भी कई परियोजनाएं चल रही हैं|
लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए 12 नवम्बर बर्ड मैन ऑफ़ इंडिया डॉ.सलीम अली के जन्मदिन को राष्ट्रीय पक्षी दिवस के रूप में मनाया जाता है| 5 अक्टूबर को विश्व प्राणी दिवस और एक से आठ अक्टूबर तक वन्य प्राणी सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है| केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने-अपने राजकीय पशु, पक्षी, फूल और वृक्ष भी घोषित किये हुए हैं| हरियाणा में तो सभी सरकारी पर्यटन रेस्तरां और होटलों के नाम भी पक्षियों के नाम पर रखे गए हैं|  जैव विविधता के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने 1952 में वन्य जीव बोर्ड का गठन किया और सन 1972 में वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम बनाकर इसकी धारा एक में दुर्लभ प्रजातियों की सूची प्रकाशित की| 
किन्तु इतना सब करने के बाद भी जैव विविधता का ह्रास जारी है| कहीं बढती आबादी को साधन और सुविधाएं देने के नाम पर विकास परियोजनाओं की आड़ में सरकारी तंत्र कहर बरपा रहा है तो कहीं मानव का लालच और धन की भूख तबाही का कारन बन रही है|
अगर हमें अपनी समृद्ध विरासत को बचाना है तो ईमानदार और सामूहिक प्रयास करने होंगे| 

धूम्रपान - तम्बाकू

धूम्रपान - तम्बाकू पर निबंध 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार तम्बाकू जनित रोगों के कारण दुनियाभर में 40 लाख लोग प्रतिवर्ष अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं| अर्थात 11 हजार व्यक्ति प्रतिदिन काल का ग्रास बनाते हैं| जिनमें से 20 प्रतिशत भारतीय होते हैं, जबकि हमारी आबाद केवल दुनिया की 16 प्रतिशत ही है| भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में 2200 लोग प्रतिदिन तम्बाकू के कारण मौत का शिकार होते हैं| 
वैज्ञानिकों का कहना है कि तम्बाकू में 800 के लगभग यौगिक पाए जाते हैं, जिनमें से 33 प्रकार के यौगिक अत्यंत जहरीले हैं| इनमें निकोटिन, फिराडीन बेसेस, एक्रोलिन, कोलीडीन, प्रूसिक एसिड, अमोनिया, पाईरीन, फुरफुरल, राजोलीन, कर्कोलिक एसिड, पोलिनियम, रेडियम, कार्बन मोनोऑक्साइड, संखिया आदि शामिल हैं| 
एक किलो तम्बाकू में 800 से 1000 ग्रेन के लगभग निकोटिन पाया जाता है| यह कितना जहरीला होता है, इसका अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि मात्र डेढ़ ग्रेन शुद्ध निकोटिन से ही व्यक्ति की मौत को सकती है| एक सिगरेट में आमतौर पर एक ग्रेन तम्बाकू होता है जिसमें ढाई से चार मिलीग्राम निकोटिन पाई जाती है| 
तम्बाकू के प्रयोग से अस्थियाँ व अस्थि रज्जू कमजोर हो जाते हैं, फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तथा खांसी व टी.बी. हो जाती हैं| मुंह और फेफड़ों का कैंसर हो जाता है, स्मरण शक्ति का ह्रास, अनिंद्रा तथा बेचैनी जैसी समस्या भी हो जाती है| इसके अलावा तम्बाकू से 'टोबैको एमाब्लियोपिया' नामक रोग भी हो सकता है, जिसमें आँखों की रौशनी जा सकती है| विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पुरुषों में होने वाले 50 प्रतिशत और महिलाओं में होने वाले 25 प्रतिशत कैंसर गुटखा के पाउच के रूप में प्रचलित तम्बाकू के सेवन से होते हैं|
तम्बाकू का सेवन हर रूप में नुकसानदायक है| एक गलत धारणा है कि फ़िल्टर युक्त सिगरेट और हुक्का पीने से स्वस्थ्य पर कुप्रभाव नहीं होता| सच यह है कि फ़िल्टर केवल दो-चार काश लेने तक कुछ तत्वों को रोक पता है, मगर बाद में वे भी शरीर में पहुँचने लगते हैं| इसी प्रकार हुक्के का पानी भी सभी ज़हरीले तत्वों को नहीं रोक सकता| हालांकि इसमें कुछ मात्र में ज़हरीले तत्व घुल जाते हैं|
धूम्रपान न करने वाले लोगों पर उस धुआं का ज्यादा कुप्रभाव होता है जो धूम्रपान करने वाले लोगों द्वारा छोड़ी जाती है| इसलिए सरकार ने सार्वजानिक स्थानों और सार्वजानिक परिवहन सेवाओं में धूम्रपान पर रोक लगाकर इसे दंडनीय अपराध बना दिया है| अब तम्बाकू और गुटखे का प्रचार भी नहीं किया जा सकता| लोगों को तम्बाकू के दुष्प्रभावों से अवगत करवाने और जागरूकता फैलाने के लिए प्रति वर्ष 31 मई को तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है|
खेद का विषय है कि सरकारी तंत्र की निष्क्रियता, इच्छा शक्ति के आभाव और भ्रष्टाचार के कारण उक्त प्रतिबन्ध कारगर साबित नहीं हो रहा|
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि एक लोकतंत्रिक गणराज्य की सरकार राजस्व कमाने के लिए अपने ही लोगों को जहर पीने, खाने के लिए छूट देती है और इसका व्यापार करने के अनुमति प्रदान करती है| इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि बीडी उद्योग में लगे लाखों लोग बेरोजगार हो जायेंगे| लेकिन यह केवल बहाना है यदि सरकार की इच्छा शक्ति हो तो इस व्यवसाय में लगे लोगों के लिए किसी वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करके जहर के व्यापार को रोक सकती है| यूँ भी जितना राजस्व तम्बाकू उद्योग से आता है उससे अधिक जान-माल का नुकसान तो इससे उत्पन्न होने वाले रोगों की रोकथान और स्वास्थ्य सेवाओं पर हो जाता होगा|

सरकार ईमानदारी से प्रयास करे यह तो जरुरी है, लेकिन अकेले सरकार के करने से कुछ नहीं होगा लोगों को भी अपना सहयोग इसकी रोकथाम में देना होगा तभी इस जहर से समाज और राष्ट्र को मुक्ति मिलेगी|  

वायु प्रदूषण (Air Pollution)

वायु प्रदूषण (Air Pollution) निबंध 

बढती आबादी और बढ़ते विलासिता के साधनों के परिणामस्वरूप आज हमारा पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है| जल और वायु दोनों जहरीले होते जा रहे हैं| वातावरण में जहरीली गैसों की मात्रा तेजी से बढ रही है| परिणामस्वरूप पृथ्वी का औसत तापमान भी बढ़ रहा| जिसे वश्विक तापन या ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं| ओजोन परत का क्षरण भी इसी का परिणाम है|  वायु प्रदूषण के कारण बड़े पैमाने पर लोग मर रहे हैं| देश भर में एक साल में लगभग 52 हजार व्यक्ति वायु प्रदूषण के कारण मौत का शिकार होते हैं| 
वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जिसमें बाह्य वातावरण में मनुष्य और उसके पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्व सघन रूप से एकत्रित हो जाते हैं|
वायु प्रदूषण मुख्यत: कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुंए, वाहनों, खाना पकाने के साधनों, वायुयानों, ताप ऊर्जा संयत्रों, आतिशबाजी, कीटनाशकों के छिडकाव तथा प्लास्टिक कचरे को जलाने आदि से होता है|  वाहनों व कारखानों से मुख्यत: कार्बन मोनोऑक्साइड नामक जहरीली गैस निकलती है| वाहनों से हानिकारक सीसा धातु भी वातावरण में मिलती है| लकड़ी, गोबर के कंडे (उपले) और कोयला जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि गैसें निकलती हैं| इनके अलावा बैंजोपायरिन नामक घातक रसायन भी निकलता है, जो कैंसर को जन्म देता है| सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण तथा ए.सी. व फ्रिज से सी.एफ़.सी. गैस अर्थात क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैस निकलती है, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती है| 
एक शोध के अनुसार चूल्हे पर लकड़ी और कंडे (उपले) जलाकर भोजन पकाने वाली महिला तीन घंटे में 20 सिगरेट के बराबर प्रदूषण ग्रहण कर लेती है| मानसून के दौरान प्रदूषण की मात्रा 8 गुणा तक बढ़ जाती है| 
औद्योगिक दुर्घटनाएं भी वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं| वायु प्रदूषण फैलाने वाली विश्व इतिहास की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना भारत में ही 2-3 दिसम्बर, 1984 की रात भोपाल (मध्यप्रदेश) स्थित बहुराष्ट्रीय कम्पनी यूनियन कार्बाइड के कारखानों में हुई| 40 टन MIC गैस रिसी, जिसने पूरे शहर पर कहर ढा दिया था| लगभग 2500 लोग मारे गए, लगभग 10 हजार गंभीर रूप से घायल हुए, लगभग 20 हजार अर्ध-विकलांग और 1.80 लाख प्रभावित हुए| 
बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार ने 1982 में वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम लागू किया| उद्योगों के लिए पर्यावरण अनुमति और वाहनों के लिए प्रदुषण जांच को आवश्यक किया गया है, 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों का परिचालन रोका गया है| दिल्ली में सार्वजानिक परिवहन वाहनों को सी.एन.जी. से चलाया जा रहा है| 
किन्तु बढती आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक तरह वाहनों और उद्योगों की संख्या बढ़ रही है, वहीँ दूसरी ओर सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक प्रदूषण नियंत्रक माने जाने वाले पेड़ों का सफाया किया जा रहा है, जिसके कारन दिनों-दिन वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है| फसलों के अवशेष और प्लास्टिक कचरा जलाने का नया चलन शुरू हो जाने से समस्या और गंभीर हो रही है| 
सरकार ने क़ानून तो बना दिए किन्तु भ्रष्टाचार के चलते उनका सही ढंग से पालन नहीं हो पा रहा है तो लोग भी अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझ रहे हैं|  वायु प्रदूषण रोकने के लिए खाना पकाने के लिए बायो गैस और एल.पी.जी. का प्रयोग हो ताकि वृक्ष बच सकें और लकड़ी जलने से होने वाला प्रदूषण भी रुक सके| प्लास्टिक कचरे और फसलों के अवशेष जलाने पर पूरी तरह पाबंदी लगे| उद्योगों को मानकों के अनुसार ही चलने दिया जाए| सौर ऊर्जा सहित सभी प्रकार के नवीकृत ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दिया जाए तभी इस संकट से मुक्ति मिल सकेगी| 

बिजली की बचत पर्यावरण की रक्षा

बिजली की बचत पर्यावरण की रक्षा 

"बिजली की बचत ही बिजली की बढ़त है|" आपने अक्सर सुना होगा| इसका अभिप्राय है यदि हम कम बिजली  की खपत करते हैं तो जो बिजली बचती है, वह हमारे बाद में काम आ जाती है| यानी कि बिजली बचाकर हम न सिर्फ उसकी मात्रा बढ़ाते हैं, बल्कि कम बिल अदा करके अपना पैसा भी बचाते हैं| 
बिजली की बचत से हमें आर्थिक लाभ तो होता ही है] इससे हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित होता है| क्योंकि की बिजली पैदा करने के लिए थर्मल प्लांटों में कोयला जलाया जाता है, जिससे जहरीली गसें हमारे वातावरण को प्रदूषित करती हैं| इतना ही नहीं थर्मल प्लांटों से निकलने वाली फ्लाई ऐश भी पर्यावरण को प्रदूषित करती है साथ ही उसका भण्डारण भी अब गंभीर समस्या बनता जा रहा है| एक अनुमान के अनुसार लगभग 50 हजार एकड़ उपजाऊ भूमि फ्लाई ऐश के नीचे दबी हुई है| 
यदि हम बिजली की खपत बढ़ाते जायेंगे तो हमें अधिक कोयला जलाना होगा, परिणामस्वरूप अधिक गसें वायुमंडल में घुलेंगी और अधिक फ्लाई ऐश के ढेर लगेंगे| लेकिन यदि हम कम मात्रा में बिजली की खपत करके बिजली बचायेंगे तो कम गैस उत्सर्जन होगा और हमारा पर्यावरण शुद्ध रहेगा| 

बिजली की बचत के उपाय- 

बिजली की बचत के लिए हमें बहुत अधिक त्याग की जरुरत नहीं है, यदि हम अपनी आदतों में मामूली सा सुधार कर लें और छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें तो भी बिजली की काफी बचत कर सकते हैं| जैसे-
1. परम्परागत बल्बों की बजाय एल ई डी बल्ब या सी एफ एल टयुबों का प्रयोग करें| इससे भारी मात्रा में बिजली की बचत होगी|
2. आवश्यकता न होने पर लाइट, पंखे, कूलर, AC, टी वी आदि को बंद कर दें|
3. किसी भी उपकरण को अधिक देर तक स्टैंडबाई मोड में न रखें|
4. अच्छी कंपनी के और फाइव स्टार रेटिंग वाले उपकरण ही खरीदें, जो कम बिजली की खपत करते हैं|
5. नलकूपों की मोटर केवल तभी चलायें जब खेती को वास्तव में ही पानी देने की जरुरत हो| फ्लैट रेट पर मिलने वाली बिजली का दुरुपयोग न करें|
6. बिजली के उपकरणों को काम समाप्त होते ही बंद कर दें|

उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर हम भी बिजली की बचत और पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं| तो आज से ही इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनायें और पर्यावरणविद बनें|