पर्यावरण और मानव पर रसायनों के दुष्प्रभाव

प्रश्न- शैम्पू में कैंसर पैदा करने वाला कौन-सा रसायन होता है?
उत्तर- शैम्पू में नाइट्रोसैमाइन्स रसायन होता है, जिससे कैंसर होता है।
प्रश्न-लिपस्टिक में कौन-कौन से हानिकारक तत्व पाये जाते हैं? 
उत्तर-कैम्पेन फॉर सेफ कास्मेटिक्स नामक अमेरिकी संगठन के अनुसार लिपस्टिक में हानिकारक तत्व सीसे की मात्रा निर्धारित स्तर से बहुत अधिक होती है। सीसे के पेट में ताने से गर्भधररण क्षमता का ह्रास और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। संगठन के अनुसार महँगी लिपस्टिक में सीसे के अंश सस्ती लिपस्टिक से कहीं अधिक होते हैं।                                                                                                                               प्रश्र-लिपस्टिक में कैंसर पैदा करने वाला कौन-सा रसायन होता है?


उत्तर- फिलाडेल्फिया के फॉक्स चेंज कैंसर केन्द्र की शोध रिर्पोट के अनुसार लिपस्टिक मेें ब्यूटाइल बेंजाइल थायलेट अर्थात बीबीपी नामक रासायनिक पदार्थ के कारण स्तन उत्तक के विकास में रुकावट आती है। बीबीपी का प्रयोग लिपस्टिक को चमकीला बनाने के लिए किया जाता है। जिससे स्तन कैंसर हो सकता है।             
प्रश्र-धुमपान और शराब का एक साथ प्रयोग शरीर के किस अंग को प्रभावित करता है?
उत्तर-निकोटीन व शराब का एक साथ सेवन दिमागी क्षमता को प्रभावित करता है। टेम्पल विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार दोनों मादन पदार्थों का एक साथ प्रयोग मनुष्य के सीखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है।                                                                                                                                                         
प्रश्न- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मानव दूध में डीडीटी की कितनी मात्रा सुरक्षित है? 
उत्तर- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिदिन एक लीटर दूध में डीडीटी की 0.005 मिली ग्राम मात्रा को स्वीकार किया जा सकता है।
प्रश्न- पंजाब में मानव दूध में डीडीटी/बीएचसी की कितनी मात्रा पाई गई है?
उत्तर- पंजाब राज्य विज्ञान एवं तकनीकी परिषद के एक अध्ययन के अनुसार पंजाब में मानव दूध में डीडीटी की मात्रा प्रति लीटर 0.51 मिली ग्राम पाई गई जो अमेरिका, कनाडा, यूरोप और आस्ट्रेलिया से अधिक है। 
प्रश्न- विश्व में मानव दूध में सर्वाधिक डीडीटी कहाँ पाई गई है?
उत्तर- ग्वाटेमाला के मानव दूध में 4.07 मिली ग्राम।

ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण

प्रश्न- ग्लोबल वार्मिंग के चलते मालदीव के कितने द्वीप समुद्र में डूब चुके हैं ?
उत्तर- 9 द्वीप|
प्रश्न- हिमालय में फैला ग्लेशियर पिघलने के कारण 1962 से अब तक कितना सिकुड़ चुका है?
उत्तर- 21 प्रतिशत|
प्रश्न- पृथ्वी के तापमान में सन 1900 से लेकर अब तक कितनी वृद्धि हो चुकी है?
उत्तर- 3 फरवरी, 2007 को पैरिस में जारी पर्यावरण एवं मौसम विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक 0.7 से 0.8 डिग्री के बढ़ोतरी हो चुकी है| जिसके सन 2100 तक 1.1 से लेकर 6.4 डिग्री तक बढ़ने की आशंका है|
प्रश्न- मानव द्वारा प्रतिवर्ष कितनी कार्बन वायुमंडल में छोड़ी जा रही है?
उत्तर- मनुष्य 8 अरब मीट्रिक टन कार्बन सालाना वायुमंडल में छोड़ देते हैं| जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है|
प्रश्न- CFC अर्थात क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैस का प्रयोग किन-किन उपकरणों में होता है?
उत्तर- CFC का प्रयोग एयर कंडीशन और फ्रिज में होता है| इससे वायुमंडल में 17 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसें बढ़ रही हैं|
प्रश्न- वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसें कैसे और कितनी बढ़ रही हैं?
उत्तर- जीवाश्म ईंधन से 57 प्रतिशत, CFC से 17 प्रतिशत, कृषि से 14 प्रतिशत, जंगलों के सफाए से 9 प्रतिशत तथा अन्य उद्योगों से 3 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैस वायुमंडल में मिल रही हैं|
प्रश्न- वायुमंडल में कौन-सी गैस सर्वाधिक पाई जाती है?
उत्तर- नाइट्रोजन|
प्रश्न- वायुमंडल में कितने प्रतिशत नाइट्रोजन पाई जाती है?
उत्तर- 78 प्रतिशत|
प्रश्न- कौन-सी गैस ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए उत्तरदायी है?
उत्त्तर- कार्बनडाईऑक्साइड |
प्रश्न- विश्व में कितने ज्वालामुखी सक्रिय हैं?
उत्तर- 850
प्रश्न- प्रकृति का सुरक्षा वाल्व किसे कहा जाता है?
उत्तर- ज्वालामुखी |


जैवविविधता और पर्यावरण

प्रश्न- एशिया में पक्षियों की कुल कितनी प्रजातियाँ पाई जाती हैं?
उत्तर- 2900.
प्रश्न- एशिया में पाई जाने वाली 2900 पक्षी प्रजातियों में से कितनी विलुप्ति के कगार पर हैं?
उत्तर- 500.
प्रश्न- बर्ड लाइफ इंटरनेशनल ने कितनी प्रजातियों की पहचान की है, जिनकी स्थिति चिंताजनक है? 
उत्तर- 77 प्रजातियाँ |  जिनमें राजगिद्ध, शाकाहारी कबूतर, सतरंगी चिड़िया, नीलकंठ, तोते, मोर और बाज आदि की तादाद तेजी से घटी है|
प्रश्न- एशिया में पक्षियों पर सर्वाधिक संकट किस देश में है?
उत्तर- सबसे ख़राब स्थिति इंडोनेशिया की है, जहाँ पक्षियों की 180 प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं| दूसरे स्थान पर चीन है, जहाँ 178 प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है| भारत में 93 प्रजातियों पर तथा फिलिपिन्स में 81 प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है|
प्रश्न- तोते की उम्र कितनी होती है?
उत्तर- लगभग 50 साल|
प्रश्न- तोते वर्ष में कितनी बार प्रजनन करते हैं?
उत्तर- वर्ष में एक बार|
प्रश्न- सर्वाधिक लुप्त पक्षियों में से एक तोता पक्षी की कितनी प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा कितनी गंभीर खतरे में हैं?
उत्तर- तोते की 145 प्रजातियों में से 46 गंभीर खतरे में हैं जबकि 39 प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं|
प्रश्न- दुनिया के सबसे लम्बे ज़हरीले कोबरा का क्या नाम है और यह कहाँ पाया जाता है?
उत्तर- दुनिया का सबसे लम्बा कोबरा केन्या में पाया जाता है, जो करीब 2.6 मीटर लम्बा तथा भूरे रंग व काले गले का होता है| इसको नाजा आशेई नाम दिया गया है| यह एक ही दंश में 20 लोगों को मौत की नींद सुला सकता है|

भारत में वन

प्रश्न- राष्टीय वन नीति के अनुसार पर्यावरण की दृष्टि से कम से कम कितने प्रतिशत क्षेत्र पर वनों का आवरण आवश्यक है?
उत्तर- 33 प्रतिशत|
प्रश्न- भारत सरकार ने नयी वन नीति कब घोषित की?
उत्तर- 1988.
प्रश्न- भारत में कुल वन और वन आच्छादित क्षेत्र कितना है?
उत्तर- 7,83,668 वर्ग किलोमीटर |
प्रश्न- देश के कुल क्षेत्रफल के कितने प्रतिशत भूभाग पर वनों का आवरण है?
21.02 प्रतिशत |
प्रश्न- विश्व के कुल वन क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत भाग भारत में है?
उत्तर- 2.82 प्रतिशत|
प्रश्न- देश में सर्वाधिक वन किस राज्य में हैं?
उत्तर- मध्यप्रदेश|
प्रश्न- कुल वन क्षेत्र की दृष्टि से भारत के प्रथम तीन राज्य कौन-से हैं?
उत्तर- मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ |
प्रश्न- किस राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के सबसे कम भाग पर वनों का विस्तार पाया जाता है?
उत्तर- हरियाणा |
प्रश्न- पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए कितना न्यूनतम वन आवरण अनिवार्य है?
उत्तर- 33 प्रतिशत|
प्रश्न- भारतीय वन संरक्षण विभाग की स्थापना कब की गयी?
उत्तर- 1981 ई. में|
प्रश्न- वन सुरक्षा के लिए स्वतंत्र भारत की प्रथम वन नीति कब घोषित हुयी?
उत्तर- 1952 ई. में|
प्रश्न- भारत में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर किस प्रकार के वन पाए जाते हैं ?
उत्तर- उष्णार्द्र पतझड़ वन |

वृक्ष हमारे मित्र निबंध

निबंध - वृक्ष हमारे मित्र  

पेड़ हमारे मित्र 

किसी कवि ने लकड़ी की अहमियत बताते हुए लिखा है- "जीते लकड़ी, मरते लकड़ी, खेल तमाशा लकड़ी का|" कहने का भाव यह है कि मनुष्य को जन्म से लेकर मरण तक लकड़ी की जरुरत पड़ती है और यह लकड़ी हमें मिलती है वृक्षों से| दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि वृक्ष मानव का आजीवन तो साथ निभाते ही हैं, मरने पर भी उसके अंतिम संस्कार में काम आते हैं| 
हमारे जीवन में वृक्षों का महत्त्व केवल लकड़ी के कारण ही नहीं है, वृक्षों से हमें और भी बहुत कुछ मिलता है| इस लाभ को दो भागों में बांटा जा सकता है-
१. वृक्षों या वनों के प्रत्यक्ष लाभ और २. वृक्षों के अप्रत्यक्ष लाभ|
१.प्रत्यक्ष लाभ में वे लाभ शामिल हैं जो हमें सीधे तौर पर प्राप्त होते हैं| जैसे लकड़ी, भोजन, छाया, औषधियां आदि|
२. अप्रत्यक्ष लाभ के रूप में वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण से सोख कर ओक्सीजन प्रदान करते हैं, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं, प्रदूषण नियंत्रण में मदद करते हैं, वर्षा लाने में सहायता करते हैं और खाद्य प्रोटीन उपलब्ध करवाते हैं| 
वृक्ष किस-किस रूप में हमारे मित्र हैं अब इसकी विस्तार से चर्चा करेंगे-

लकड़ी प्रदाता के रूप में- 

वृक्षों से हमें जलावन और इमारती लकड़ी मिलती है, सभी प्रकार का फर्नीचर भी लकड़ी से ही बनाया जाता है| यहाँ तक कि छोटी नाव और कश्मीर में हाउस बोट भी लकड़ी से ही बनाये जाते हैं| दैनिक जीवन में वृक्षों की लकड़ी का बहुत अधिक महत्त्व है और यह हमें अपने वृक्ष मित्रों से ही प्राप्त होती है|

फूल और फल प्रदाता के रूप में- 

वृक्षों से हमें अनेक प्रकार के फल और फूल प्राप्त होते हैं| फलों से जहाँ हमारी विटामिन और प्रोटीन आदि जरूरतें पूरी होती हैं और यह हमारी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करते हैं| वहीँ फूलों का भी हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्त्व है और ये हमें मिलते हैं वृक्ष मित्रों से|

प्रदूषण नियंत्रक के रूप में-

वृक्षों को सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक प्रदूषण नियंत्रक कहा जाता है| क्योंकि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके प्राण वायु कहलाने वाली ओक्सीजन को वातावरण में छोड़ते हैं| जिससे हमारा पर्यावरण संतुलित रहता है| वृक्ष रेगिस्तान का विस्तार भी रोकते हैं| इस प्रकार वे हमारे अच्छे मित्र की भूमिका निभाते हैं|

औषधी प्रदाता के रूप में- 

वृक्षों और वनस्पतियों से ही हमें अधिकांश औषधियां प्राप्त होती हैं| कितने ही वृक्षों के फल, फूल, पते, जड़, छाल आदि औषधियों के रूप में प्रयोग होते हैं और मानव जीवन को सुखमय और दीर्घ बनाने में अपना योगदान देते हैं| इस प्रकार वृक्ष हमारे सच्चे मित्र हैं|

भोजन और आश्रय प्रदाता के रूप में- 

वृक्षों से न केवल मानव को ही भोजन मिलता है, बल्कि अन्य शाकाहारी जीव-जंतुओं को भी भोजन मिलता है| वृक्षों से बड़ी मात्र में खाद्य प्रोटीन प्राप्त होता है| इसके अलावा वृक्ष मनुष्यों और जीवों को अपनी छाया और शाखाओं पर आश्रय भी प्रदान करते हैं| किसान दिन में पेड़ों की छाया में आश्रय पाते हैं और रात के समय पेड़ों पर बने मचान में रहकर अपनी फसलों की सुरक्षा करते हैं|

भू-संरक्षक के रूप में-

वृक्ष भू-कटाव और मृदा-अपरदन को रोकने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| वृक्षों के कारन बाढ़ पर भी नियंत्रण रहता है और ये तेज हवाओं को नियंत्रित करके रेगिस्तान के फैलाव को भी रोकते हैं|

खाद प्रदाता के रूप में- 

वृक्ष भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाते हैं| वृक्षों के पते जहाँ खाद का काम करते हैं, वहीँ वृक्षों के जड़ें पानी को सोखकर रखती हैं और आवश्यकता के समय फसल को उपलब्ध करवाती हैं| 

कागज़ प्रदाता के रूप में- 

पेड़ों से मिलने वाली लकड़ी की सर्वाधिक खपत कागज़ और लुगदी उद्योग में होती है, यानी कागज़, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती वह भी हमें वृक्ष मित्रों की बदोलत ही मिलता है|  

शोर प्रदूषण - कारण और निवारण

ध्वनि / शोर प्रदूषण (Noise Pollution) निबंध 

शोर अथवा ध्वनि प्रदूषण से आशय है- अनावश्यक, अनुपयोगी, असुविधाजनक कर्कश ध्वनि| शोर प्रदूषण दो प्रकार का होता है| क.प्राकृतिक और ख. कृत्रिम| बादलों का गरजना, नदियों व झरनों का शोर, तूफ़ान व भूकंप से होने वाला शोर आदि प्राकृतिक शोर प्रदूषण के स्त्रोत हैं| जबकि मानव कृत शोर कृत्रिम शोर प्रदूषण की श्रेणी में आता है| 
शोर प्रदूषण की मात्रा को उसके दबाव, सघनता, उच्चता अथवा तारत्व से मापा जाता है| शोर मापने की इकाई को डेसीबल अथवा डी.बी. कहते हैं| 
शोर प्रदूषण के प्रमुख कारणों में वाहन, कारखाने, धार्मिक आयोजन, राजनैतिक कार्यक्रम, विवाह समारोह और वायुयानों का शोर आदि प्रमुख हैं|
शोर प्रदूषण का सर्वाधिक दुष्प्रभाव कान पर होता है, क्योंकि शोर प्रदूषण से श्रवण शक्ति का ह्रास होता है| इसके अलावा चिडचिडापन, बहरापन, चमड़ी पर सरसराहट, उलटी, जी-मितलाना, चक्कर आना और स्पर्श अनुभव की कमी जैसे दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं| शोर का स्तर 190 डी.बी. से अधिक होने पर व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है| विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग शोर स्तर को सुरक्षित माना है| औद्योगिक क्षेत्रों में 75 डेसीबल, व्यापारिक क्षेत्रों में 65 डेसीबल,आवासीय क्षेत्रों में 55 डेसीबल तथा शांत क्षेत्रों में 50 डेसीबल शोर सुरक्षित माना जाता है| यहाँ शांत क्षेत्र से आशय उन इलाकों से है जहाँ अस्पताल, पुस्तकालय और शिक्षण संस्थान आदि हों|
शोर प्रदूषण को रोकने के लिए आवश्यक है कि निजी वाहनों का प्रयोग कम से कम किया जाए और सार्वजानिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाए| डी.जे., टी.वी., रेडियो, म्यूजिक प्लेयर आदि धीमी आवाज पर बजाएं, हॉर्न का प्रयोग अति आवश्यक होने पर ही करें और प्रेशर हॉर्न का प्रयोग बिलकुल न करें| आतिशबाजी न करें, लाउडस्पीकर का प्रयोग आवश्यक होने पर निश्चित आवाज़ में ही करें| धार्मिक आडम्बरों का शोर रोका जाए और ध्वनी प्रतिरोधी भवनों का निर्माण करके भी शोर प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है| 
शोर प्रदूषण की रोकथाम के लिए अनेक कानून बने हुए हैं| सर्वोच्च न्यायालय ने भी शोर प्रदूषण की रोकथाम के लिए रात दस बजे से सुबह छ बजे तक लाउडस्पीकर का प्रयोग वर्जित किया हुआ है| किन्तु न तो हमारी क़ानून लागू करने वाली एजेंसीज इस मामले में गंभीर हैं और न लोग ही अपना उत्तरदायित्व समझते हैं| 

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम सब मिलकर इस समस्या के समाधान के लिए अपना योगदान दें| तभी इस बिमारी पर काबू पाया जा सकेगा| 

जैव विविधता (Biodiversity) - पर्यावरण

जैव विविधता (Biodiversity) पर निबंध 

जीवधारियों की विभिन्न प्रजातियों तथा उनकी विभिन्नताओं को जैव विविधता कहा जाता है| अध्ययन की दृष्टि से जय विविधता को तीन स्तरों में बांटा जा सकता है- (क) आनुवांशिक विविधता (ख) प्रजातीय विविधता (ग) पारितंत्रिय विविधता| 
हमारा देश भौगोलिक परिस्थितियों और जलवायु में विविधता के कारण एक जैव विविधता सम्पन्न देश| दुनिया के पांच प्रतिशत जीव भारत में पाए जाते हैं, जबकि भारत का कुल क्षेत्रफल संसार का केवल दो प्रतिशत ही है| दुनिया की कुल ज्ञात लगभग दो लाख 50 हजार वनस्पतियों में से भारत में लगभग 15 हजार वनस्पतियाँ पाई जाती हैं| भारत में पक्षियों की 1200 जातियां तथा  900 उपजातियां पाई जाती हैं| पशुओं की लगभग 8100 प्रजातियाँ और पेड़-पौधों की लगभग 47 हजार प्रजातियाँ भी हमारे देश में पाई जाती हैं| 
किन्तु जल प्रदूषण, अवैध शिकार, वन कटाव, मानव प्राणी संघर्ष, अनियोजित विकास तथा बढती आबादी के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था के कारण जैव विविधता का तेजी से ह्रास हो रहा है|  देश में 133 जीव प्रजातियाँ 1972 के प्राणी सुरक्षा अधिनियम के तहत सुर्लभ घोषित की जा चुकी हैं तो दर्जनों अब तक विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्ति के कगार पर हैं| दुर्लभ घोषित प्रजातियों में 70 स्तनपायी, 22 सरीसृप, 3 उभयचर और 41 पक्षी प्रजातियाँ शामिल हैं| ये ऐसी प्रजातियाँ हैं जो अब क्षेत्र विशेष तक सिमित हो गई हैं| 
जैव विविधता के संरक्षण के लिए आवश्यक है कि शिकार पर प्रतिबन्ध को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, सुरक्षित वन क्षेत्र विक्सित किया जाए, वनों का विनाश और अवैध खनन रोका जाए तथा संकटग्रस्त प्रजातियों का संग्रहण किया जाए| इस दिशा में कुछ प्रयास हुए भी हैं | सरकार ने वन्य जीव संरक्षण क्षेत्र और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना की है| टाइगर प्रोजेक्ट, पक्षी विहार, हाथी परियोजनाएं, काला हिरण प्रजनन केंद्र, गिद्ध प्रजनन केंद्र और अभ्यारण्य स्थापित करने के अलावा जैव संरक्षित क्षेत्र भी बनाए हैं| प्रमुख जैव संरक्षण क्षेत्रों में निकोबार, नामदाफा, मानस, काजीरंगा, सिमलीपाल, नंदादेवी, उत्तराखंड, नीलगिरी, कच्छ का रन, मन्नार की खाड़ी, कान्हा, नोकटेक, सुंदरवन और थार का रेगिस्तान शामिल हैं| देश में 68 राष्ट्रीय उद्यान, 367 अभ्यारण्य, 25 टाइगर प्रोजेक्ट और 11 हाथी परियोजनाओं के अलावा भी कई परियोजनाएं चल रही हैं|
लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए 12 नवम्बर बर्ड मैन ऑफ़ इंडिया डॉ.सलीम अली के जन्मदिन को राष्ट्रीय पक्षी दिवस के रूप में मनाया जाता है| 5 अक्टूबर को विश्व प्राणी दिवस और एक से आठ अक्टूबर तक वन्य प्राणी सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है| केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने-अपने राजकीय पशु, पक्षी, फूल और वृक्ष भी घोषित किये हुए हैं| हरियाणा में तो सभी सरकारी पर्यटन रेस्तरां और होटलों के नाम भी पक्षियों के नाम पर रखे गए हैं|  जैव विविधता के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने 1952 में वन्य जीव बोर्ड का गठन किया और सन 1972 में वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम बनाकर इसकी धारा एक में दुर्लभ प्रजातियों की सूची प्रकाशित की| 
किन्तु इतना सब करने के बाद भी जैव विविधता का ह्रास जारी है| कहीं बढती आबादी को साधन और सुविधाएं देने के नाम पर विकास परियोजनाओं की आड़ में सरकारी तंत्र कहर बरपा रहा है तो कहीं मानव का लालच और धन की भूख तबाही का कारन बन रही है|
अगर हमें अपनी समृद्ध विरासत को बचाना है तो ईमानदार और सामूहिक प्रयास करने होंगे|